शुक्रवार, 27 जून 2014

क्रोध और योग




अगर आप कार चला रहें है और कोई गाड़ी आप को गलत साइड से ओवरटेक कर ले - क्या आप गुस्से से उबल जाते हैं? यदि घर पर आप के बच्चे या फिर आप की पत्नी [पति] सहयोग ना दें तो क्या आप का रक्तचाप बढ़ जाता है. दफ्तर में यदि कोई अधीनस्थ बिना बताये छुट्टी कर ले तो आपका पारा चढ़ जाता है …
क्रोध एक सामान्य और भी स्वस्थ भावना है - लेकिन इसे  एक सकारात्मक तरीके से निपटना बहुत महत्वपूर्ण है. अनियंत्रित क्रोध आपके स्वास्थ्य और रिश्तों दोनों पर बुरा प्रभाव ला सकता  हैं.
क्रोध - शब्द अते ही माथे की त्य्यौरियाँ चढ़ जाती हैं. ना तो क्रोध करने वाला और ना ही उसके सामने वाला इस अवस्था से प्रसन्न होते हैं| ये एक ऐसी अभिव्यक्ति है जॉ कोई पसन्द नहीं करता पर ऐसा हो जाता है. इस के नुक्सान से हम सब वाकिफ हैं और इस के प्रभाव से हम सब बचना चाहते हैं. क्रोध समस्या तब बनता है जब अकारण हो ऑर किसी पर अकारण ही निकले.  ये एक चेन रियक्शन की तरह पेहले आप से फिर आप के पास के लोगों पर ट्रान्स्फर होता है.
ये एक सामान्य प्रक्रिया है| मनोवैज्ञानिकों के विचार से क्रोध एक तरह से क्षुब्ध भावनायों का क्षय है. इस प्रकार से जो विचार अन्तः मन में दबे हुए हैं - वो क्रोध के जरिये बाहर निकल आते हैं. यदि क्रोध को लिया जाये तो क्रोध बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक है. क्रोध एक उर्जा है और यदि यही उर्जा सही तरीके से उपयोग मे लाई जाये तो कठिन से कठिन कार्य भी सुगम हो जाता है. जैसे की फ्लॉरेन्स नाइटिंगल को क्रोध था पर वो क्रोध रोगों के लिए था- ना की रोगियों के लिए।  अतः उन्होंने उस क्रोध की उर्जा को रोगियों की सेवा मैं लगा कर अपना और समाज का विकास किया.

क्रोध की उर्जा को सही तरीके से सही जगह पर उपयोग करना ही इसका सदुपयोग है. कहना बहुत आसान है परंतु इस उर्जा का सही उपयोग करना भी आना चाहिए जिसे हमारे मनोवैज्ञानिक एवं धर्म ग्रंथों मे विस्तार से बताया है. योग - किसी भी क्रिया का ब्रह्माण्ड मे सामंजस्य लाने के लिये उर्जा से संयोग ही योग है. इसी को योगी परम शक्ति से मिलन को कहते हैं.
भगवद्गीता संसार मे जीने के लेीय सुगम पथ से मार्गदर्शन करने के लिए उत्तम ग्रंथ है. गीता के अनुसार,
आसन, प्राणायाम जैसी क्रियाएं करनेवाले को योगी नहीं कहा जा सकता। गीता के अनुसार, जब नियंत्रित किया हुआ शरीर, अपने आप मे स्थित हो जाता है और सब कामनायों से निःसप्रेह हो जाता है, तब ऐसे चित्त वाले व्यक्ति को युक्त कहा जाता है। योगी वह है जिसका चित्त किसी भी कामना मे नहीं लगता।

ऐसा तो है नहीं की दुख ना आये- दुख शरीर के कष्ट से होता है और व्यथा मन के कष्ट से | और क्रोध के यही दो कारण होते हैं. क्रोध की उत्पत्ती दुख अथवा व्यथा से होती है. जब किसी के मानस पटल पर कोई दुख हो या फिर कोई परेशानी हो तो क्रोध आना स्वाभाविक है. क्रोध का निर्माण आस पास की परिस्थितयों के कारण होता है. अब उन परिस्थितयों को बदला नहीं जा सकता और यदि बदला जाया सके तो इसके लिए प्रयत करना होगा. इसलेीय अध्यात्मिक साधनों का लक्ष्य शोक या रोग मिटाना नहीं है, अपितु ऐसी स्थिति प्राप्त कर लेना - जिसको बड़े से बड़े दुख भी विचलित ना कर पाये. इसलिए हमें अपने मन को ऐसा बनाना पड़ेगा जिस से की परेशानियों का प्रभाव मन पर ना पड़े. हम हमेशा प्रसन्ना और निश्चिंत रह सकें. इस स्थिति को प्राप्त कर लेना ही योग है. चित्तवृत्ति के निरोध का यही परम परिणाम है की वहां स्थित हो करके ग्यानी दुख से विचलित नहीं होते और इस स्थिति से बड़ा लाभ दूसरा कुच्छ नहीं मानते.
यहाँ स्थित हो कर उस आत्यंतिक सुख का अनुभव करते हैं जो ईंद्र्यगम्य नहीं है. केवल बुद्धि से उसे जाना जा सकता है, उसका अनुभव किया जा सकता है. इस प्रकार येह स्थिति केवल दुख की निवृत्तिरूपा नहीं है. यदि आप क्रोध को काबू करना चाहते हैं तो अपने मन को सुदृढ़ बनाना पड़ेगा. उस के लिए अनेक मनोवैज्ञानिकों ने सरल उपाए दिए हैं जिसे आप क्रम से ग्रहण कर सकते हैं| यहाँ स्थित हो कर उस आत्यंतिक सुख का अनुभव करते हैं जो ईंद्र्यगम्य नहीं है. केवल बुद्धि से उसे जाना जा सकता है, उसका अनुभव किया जा सकता है. इस प्रकार येह स्थिति केवल दुख की निवृत्तिरूपा नहीं है. यदि आप क्रोध को काबू करना चाहते हैं तो अपने मन को सुदृढ़ बनाना पड़ेगा. उस के लिए अनेक मनोवैज्ञानिकों ने सरल उपाए दिए हैं जिसे आप क्रम से ग्रहण कर सकते हैं |
सर्वप्रथम एक आदत अपना लें - बोलने से पहले सोच लें, गुस्से मे व्यक्ति हमेशा वोही शब्द चुनेगा और बोलेगा जो दूसरे को चुभे, परंतु ऐसा करते समय भूल जाते हैं कि जब क्रोध कि अवस्था समाप्त हो जाती है तो यही चुभे हुए शब्द तीर कि भांति सीने मे गढ़ जाते हैं जो आगे दूसरे व्यक्ति मे क्रोध का पोषन करते हैं। वो ही क्रोध फिर कभी ना कभी मौका देख कर निकलता अवश्य है। सो इस चेन को रोकने के लिए आवश्यक है कि क्रोध मे भी संयम बनाये रखें। कभी भी क्रोधित अवस्था मैं कोई भी बात ना करें। अपने विचार या क्रोध तब दर्शाएं जब आप संयमित अवस्था मे हों।

जब भी क्रोधित हों तो अपने क्रोध कि उर्जा को किसी शारीरिक व्यायाम या फिर शारीरिक कार्य द्वारा जैसे कि बागवानी कर के या फिर घर की सफाई कर के अथवा उस स्थान से हट कर किसी बाज़ार मे चहलकदमी कर ले जिस से ध्यान भी बटेगा और मन शांत भी हो जायेगा। कोई कोई तो कुछ देर बगीचे मे बैठ कर बच्चो को देख कर संयमित हो जाते हैं। यदि कुछ ना हो सके तो किसी ग्रंथ का पाठ करना आरंभ कर लेना चाहिए इससे उचित मार्गदर्शन का लाभ भी मिलेगा।
इस बीच मे आप अपनी समस्या को पहचाने - इस से आपका क्रोध काफी हद तक संभल जायेगा। याद रखिये किसी भी समस्या को पहचान लेना आधी लड़ाई जीतने के बराबर होता है। जब आप समस्या को पहचान जायेंगे तो स्वतः ही समाधान का कोई ना कोई रास्ता निकल आयेगा। हमेशा इस बात को याद रखिये कि क्रोध किसी समस्या का समाधान नहीं अपितु क्रोध तो आग मे घी का काम करता है.

गुस्से को काबू में करने के लिए सीखना समय पर हर किसी के लिए एक चुनौती है. अपने गुस्से पर नियंत्रण से बाहर लगता है अगर क्रोध के मुद्दों के लिए मदद की मांग पर विचार करें, तो आप आप अफसोस बातें करने के लिए कारण बनता है या आप के आसपास उन लोगों के दर्द होता है.

माफी एक शक्तिशाली उपकरण है. यदि आप क्रोध और अन्य नकारात्मक भावनाओं को अपने विचारों मे आने की अनुमति देते है, तो आप अपने आप को अपनी खुद की कड़वाहट या अन्याय की भावना द्वारा निगल सकते  है. यदि आप किसी को माफ कर सकते हैं तो आप अपने लिए तो अच्छा करते ही हैं अपितु दूसरे व्यक्ति के लिए भी उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। हर कोई आप के अनुरूप ही व्यवहार करे - ऐसा तो हो नहीं सकता। हम अपने विचार के फ्रेम मे दूसरे व्यक्तियों के स्वभाव को रखते हैं और जब वो फिट नहीं बैठता तो क्षुब्ध हो जाते हैं।

इस के अलावा किसी भी धार्मिक ग्रंथ से यदि अपनी समस्या का समाधान ढूँढे तो अवश्य मिलेगा। यदि आप उपर बताये गये मार्ग पर चलें तो अवश्य लाभ होगा| इसके साथ यदि आप सुबह उठ कर शुद्ध मन से पद्मासाना या फिर सिद्धासन मे बैठ कर शांती मुद्रा मे ध्यान लगाएं तो पायेंगे की आपका जीवन के प्रति बड़ा ही सरल नज़रिया हो जायेगा।

मंत्रों मे बड़ी शक्ति होती है। क्रोध शांति का ये मंत्र आप को अवश्य लाभ पहुँचायेगा :

ओम शांते प्रशान्ते मॅम क्रोध पश् नीन स्वाहा

इस मंत्र को पढ़ने के बाद थोड़े से पानी मे फूक मारें - ऐसा २१ बारी दोहराएं। और फिर इस पानी को पी जाएं। देखियेगा की आपका क्रोध धीरे शांत हो जायेगा।

इसके अलावा निम्नलिखित दो मंत्र हैं जिन्हे आप अपनी सुविधा अनुसार उपयोग कर सकते हैं:
1. दैहिका दैविका भौतिका ताप
राम राजा नहीं कहू ब्यापा

2. भारत चरिता करी मांऊ तुलसईजे सादर सुनहिं
सिया राम पड़ा प्रेमा आवासी होई भवा रासा बिराती

याद रखिये मंत्र भी तभी काम करेंगे जब आप मन से इसे मानेंगे और क्रोध शांति का प्रयास करेंगे। 

इस के अलावा एक उपाए और भी है। आप शांति दान कर के देखिये. अन्न दान, वस्त्र दान, तुला दान तो बहुत सुना होगा पर शांति दान बहुत काम सुना होगा. इस के लिए आप को बस यही करना है कि अपने आस पास यदि कोई क्रुद्ध है या फिर उस को किसी से कोई गुस्सा रहता है तो उस की बात सुने और उस के मन की गाँठें खोलने का प्रयत्न करें. उस की भावनायों को सुने और समझे और सही पथ दिखला कर मन शांत करें. देखियेगा आप उसको शांति प्रदान करेंगे तो आपका मन भी बहुत शांत हो जायेगा. इस युग मे जहाँ सुब कुछ मेकॅनिकल हो गया है- फोने है पर रिश्ते दूर हो गये है, सोशियल साइट्स पर बहुत मित्र हैं पर अपने कहने वाले लोग कम हो गयें हैं. वहां पर कहीं ना कहीं हर कोई अपने आप को अकेला पाता है. तभी तो देखें whatzapp और facebook या फिर दूसरी सोशियल साइट्स पर लोगों की भीड है पर वहां भी सब अपने को अकेला पाते हैं. अपने मन को कोई खुल कर कह नहीं पाता. अंदर ही अंदर दबाव पलता जा रहा है. यदि इस उबलते हुए दबाव में आप किसी को शांति प्रदान करेंगे तो इस से बढ़ कर कोई सेवा तो हो नहीं सकती और आप के मन को भी परम शांति अनुभव होगी। 

|| ओम शान्ति ||

-ज्योतिषाचार्य सुश्री अल्का विज
[गोल्ड मेडलिस्ट]
द्वारका, नई दिल्ली
09350822232